छोड़ कर जा
बेशक छोड़ दे मगर खुद से मुझे कुछ इस तरह जोड़ कर जा,
के भले आसमाँ न रहे मेरे हाथों की पहुंच में मगर अपने आँचल की ज़मी मेरे पैरों में छोड़ कर जा,
सूखा है सदियों से मेरी आँखों में एक दरिया बेसबर,
डूब न सही मेरी आँखों में मगर बेखबर थोड़ी सी नमी छोड़ कर जा,
यूँ तो खामोश ही हूँ मगर पुतला ही न बन जाऊं कहीं मैं,
सो गुजारिश है तुझसे मुझे तोड़ कर जाने वाले,
के मिट जाए हस्ती भी मेरी तो क्या तू रस्म ए रूह को मेरी खुद में छोड़ कर जा॥
राही (अंजाना)
Good