जज्बात
जिक्र ए जहन
किससे करें हम
लफ़्ज हैं दबे दिल में कहीं
शायद डर रहें हैं
बाहर निकलने से
कोई समझेगा या नहीं
क्या कहेगा कोई
इसी उधेड़बुन में
खोई रहती हूं अपने ख्यालों में
करती हूं इंतजार
उस पल का
जब जज्बात तोड़ कर निकलेंगे
जहन की दीवारों को
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति
Thank you
बेहतरीन
Thanks sir
Nice lines
Thanks ma’am
Umda
Thanks
“जब जज्बात तोड़ कर निकलेंगे
जहन की दीवारों को” में अनुप्रास से अलंकृत कर मन में छिपे जज्बातों को पंक्तिबद्ध करने का सुन्दर प्रयास है. वाह
Thanks sir
गागर में सागर भर दिया है
Thanks