जहाँ तो सबका हैं,,
ये जहाँ तो सबका हैं,, जिसे हम सबने मिलकर संवारा हैं,,
बस किसी गर्दिश की बंदिश में फंसा मेरा सितारा हैं,,
कहती,, मंजूर नहीं उसको सामने खुदा के भी हाथ फैलाना,,
अतः मेरे हाथ वाले कटोरे में गोलगप्पे खाने का हुकुम हमारा हैं,,
अब तू ही बता दे,, क्या बताऊँ इन सबको तेरे बारे में,,
मेरी निगाहों में ढूंढ़ता तुझको पागल ये जहाँ सारा हैं!!!
जब फिज़ाओ में महके मेरी नज्म के चर्चे, तब हुई चुगलियाँ,,
उसकी बज्म से बह रहा एक-एक लफ्ज़ वाला दर्द हमारा हैं!!!
दूर सही मजबूर सही,, लेकिन कुछ तो अपनी सी बात हैं इनमें,
आखिर जमीं को उसी की तपन से पनपी कुछ बूंदों का सहारा हैं!!
आसान नहीं यहाँ, “अंकित” हर किसी का भीष्म बन जाना,,
कवच चीरते हर-एक तीर को आशीष देता हाथ तुम्हारा हैं!!
so much love and sorrow…beautiful poem
Where there is love,,, there are tears,,,, it might be of happiness…. 🙂
bahut achi ghazal dost
Shukriya dost
Good
वाह बहुत सुंदर रचना
बहुत खूब
Very nice
बहुत ख़ूब