जिद्द है !

ना गजल ना ही तो गीत है जाल है बस शब्दों का ,
शब्दों से शुरू हो भीतर ही भीतर खुद से लड़ने की जिद्द है !
नही मानता कहानियों-कथाओं को बच्चा कलयुग का ,
परियों की कथाओं से मन के बच्चे को बहलाने की जिद्द है !
खुलीं-बंद आँखों से खोया रहता एक परिंदा सपनो का ,
हकीकत की हरयाली में परिंदे को लाने की जिद्द है !
चौराहों पर खड़ा रह भुलाया है वक़्त इन्तजार का ,
बन मुसाफिर नयी दिशाओ में जाने की जिद्द है !
सब कुछ छुपाने से बढ़ चला है बोझ मन का ,
जाने से पहले मन की सब कह जाने की जिद्द है !
बुरा है चुपी से रूठ कर दूर हो जाना अपनों का ,
बतियाकर अब तो रूठो को मनाने की जिद्द है !
बहुत निकल चूका है पानी ठंडी आँखों का ,
दौड़ते गर्म खून से कुछ कर जाने की जिद्द है !
ना गजल ना ही तो गीत है जाल है बस शब्दों का ,
शब्दों से शुरू हो भीतर ही भीतर खुद से लड़ने की जिद्द है !
~ सचिन सनसनवाल

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