जो आत्मनिर्भर है

1

जो आत्मनिर्भर है, उन्हें आत्मसम्मान की शिक्षा दे रही हैं क्यूँ हमारी सरकार?
मजदुर अपने बलबूते पर ही जिन्दगी जीते, ये जाने ले हमारी सरकार ।
ये किसी के आगे भीख नहीं माँगते, जिन्दगी बसर करते हैं ये मेहनत-मजदूरी करके।
इन्हें चापलूसी, दग़ाबजी, देशनिंदा, देशद्रोह भाता नहीं ।
ये देश के किसान-जवान के सगे-भाई ही होते।
जो निज राष्ट्र की गरिमा का ख्याल अपने उर में ।।

2

करते हैं ये ऐसे मजदूरी जैसे लड़े सैनिक रण में ।
रमते हैं ये ऐसे कर्म में जैसे लेखक रमें अपनी लेख में ।
जाते हैं ये ऐसे काम पे जैसे किसान जायें अपनी खेत में ।
ये काम को काम नहीं पूजा समझे करते ।
करते हैं ये काम पूरी मेहनत लगन से
पाते हैं वेतन ये अपने आधे काम के,
आधे काम के वेतन लूटे लेते देश के कुव्यवस्था,
आधे वेतन से ये घर चलाते व कर देते ये राष्ट्र को,
फिर भी सिंहासनपति को पेट नहीं भरते ।

3

सुनो सिंहासन वालो तुम देश के जवान-किसान-मजदूर के प्रति तेरा कुछ सम्मान नहीं ।
इन्हें विचलित देखकर आत्मनिर्भरता, आत्मगरिमा, आत्मसम्मान की शिक्षा सिखलाते हो ।
क्या ये पहले तुमपे आश्रित थे, नहीं, कभी-नहीं, ये स्वयं कमाते व परिवार चलाते हैं ।
ये अपनी निज स्वारथ पूर्ण करने के लिए करों के पैसों को घोटला नहीं करते हैं ।
कुछ तो शर्म करो, लाज रखो निज धरा की, मजदूरों की इस पावन महि पे कुछ तो सम्मान करो निज महि की ।।

4

अगर तुम भौतिक दुनिया जीना छोड़ दोगे, तो ये लोग मौलिक दुनिया जी लेंगे ।
मगर तुम कर नहीं सकते ये काम, क्योंकि तुम हो चुके हो रज, तम के गुलाम ।
सत् को अपनाना तेरे वश के बात नहीं, तुम तपस्वी राजा राम बन सकते नहीं ।
तुम तो रजोगुण प्रधान राजा धृतराष्ट्र समान हो ।
जो राज-वैभव के लिए मिट दिये अपने पूर्ण साम्राज्य है ।

5

दया-धर्म, क्षमा, त्याग ये सब तुम्हें आता नहीं ।
करते हो तुम निज राष्ट्र की दुर्दशा ये मुझसे देखा जाता नहीं ।
सत्य-अहिंसा की पाठ पढ़ाते हो तुम निशदिन,
पर भ्रष्टाचार इस राष्ट्र से अब जाता नहीं ।
सारी व्यवस्था को तुम अंग्रेजियत बना चुके हो ।
तुम्हें स्वदेशी क्यूँ भाता नहीं ।

6

परराष्ट्र से मित्रता करते हो तुम, निज राष्ट्र के उत्थान के वास्ते ।
पर परराष्ट्र तुम्हें कुछ देता नही, वह उल्टा तुम्हारे देश के युवाओं की जिन्दगी से खेलता ये तुम्हें कहीं क्यूँ दिखता नहीं?
जो देश कभी स्वामी विवेकानन्द व भगत सिंह जैसे वीर सपुत व महान विभूति देते थे ।
आज वो देश भ्रष्टाचार की किचड़ में फँसी है , इन्हें कोई देश के लाल निकालता नहीं ।।
कैसे मिटायेंगे ये देश की भ्रष्टाचार को इन्हें समर्पण की भावना क्यूँ आता नहीं ?
ये आज सत के बंधन में बंधित नहीं ।
ये तो आज तम, रज में आत्मविभोर है।
इन्हें निज राष्ट्र से कुछ लेना-देना नहीं ।
ये तो भोग-विलास में संलिप्त है ।

7

सुनो देशवासी चयन करो ऐसे राजा तुम ।
जिसे तुम मात-पिता कह सको, और वह तुम्हें पुत्र का प्यार दे सकें ।
कठिन-विषम परिस्थिति में भी जो साथ ना छोड़े वहीं तुम्हारे राजा है ।
जो दीन-दुःखी के रक्षक वो देशद्रोह के भक्षकारक हो, वहीं तुम्हारे सरकार है ।
चुनो ऐसे राजा को तुम जो तुम्हें दे सके पुत्र का प्यार है ।
जो राष्ट्रहित में अपना सर्वस्व लूटा दे, वही तुम्हारे प्रजापालक है ।।
दीनदयाल, दीनानाथ, दयालु है, वही तुम्हारे राजा है ।
अन्यथा सबके-के-सब तुम्हारे दुःखों का कारण है ।।

8

सोचो देशवासी तुम, क्या तुम पाँच साल के लिये रजो गुण प्रधान पुरूष को सरकार बनाओगे ।
सुनो देश के जनता तुम, इतने भोले-भाले मत बनो तुम ।
श्रीमद्भगवद्गीता पढ़े तुम, सत्वगुण प्रधान पुरूष को सरकार बनाओ तुम ।
जो तुम्हें दे सके मौलिक अधिकार, ऐसे नर को सिंहासन पे बैठाओ तुम ।
जो राजहित में जान लूट दे, ऐसे नर को नारायण बनाओ तुम ।।

9.
मत फँसो तुम भ्रष्टाचार के बेड़ियों में ।
अपनी मत को मत गँवाओं तुम भ्रष्टाचारियों के चंगुल में ।
दो उन्हें अपनी मत जो दे सके राष्ट्र को एक नई पहल ।
अपनी निज स्वार्थ भूलाके कुछ तो नया कदम उठाओ जनता इस राष्ट्र में ।
तेरे ही कदम से होंगे देश में एक नई क्रान्ति जो देंगे तुम्हें पूर्ण स्वक्रान्ति ।
चलते रहोगे तुम निरन्तर आखिर मिलेंगे तुम्हें मंजिल ।

10

मत घबराओ बाधा विघ्नों से तुम, मत डरो तुम बहसी-दरिन्दों से ।
ऐसी शासन लाओ तुम जो तुम्हें दे सकें हरदम चैन की निंद है ।
आत्मनिर्भर की शिक्षा जो सरकार तुम्हें देती, उन्हें आत्मसम्मान की शिक्षा सिखलाओ तुम ।
एक जरा सी भूल के कारण तुम फिर से रजोगुण प्रधान पुरूष को सिंहासन पर मत बैठाओ तुम ।
उठाओ देश के जनता तुम कुछ ऐसा कदम जो दे सकें तुम्हें एक सुव्यवस्था राज ।

11.

हरवक्त तुम देशहित में रमें हो यहीं तुम्हारी देश के लिए सर्वश्रेष्ठ बलिदान है ।
जहां-जहां तुम अन्याय दिखें वहां न्यायधीश को लाओ तुम ।
सत्य के दरबार में हरवक्त पहरा दो तुम ।
यहीं तुम्हारी उच्चतम भविष्य है ।
देश हित के लिए तुम भी कभी अपना सर्वस्व लूटाके देखो ।
मिलती है कैसी खुशी ये पहचान करो तुम ।।

12.
देशहित में जवान किसान ही भागीदार है , ये बात मत भुलो तुम ।
देश के बच्चा-बच्चा को तुम जवान किसान के भविष्य से परिचित कराओ तुम ।
एक देश की बचाव करता तो एक देश को पालता है । यहीं है जवान-किसान का प्रारब्ध है ।
मजदूर हो तुम अपनी हक के लिए लड़ो तुम, पूछो देश के सिंहासनपतियों से,
तुम्हारी वेतन लाख से उपर है, और हमारी वेतन क्यूँ मिट्टी के भाव है ?
तुम भौतिक दुनिया जीते हो और हमारी मौलिक दुनिया रोती है ।
क्या यहीं देश की अर्थव्यवस्था व वेतन व्यवस्था है ।
जो एक को ऐय्यास की जिन्दगी देती है,
और एक को दिन-रात रूलाती है ।
कवि विकास कुमार बिहारी ।।

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