ठोकर
पत्थर समझ के ए ज़माना, मुझे ठोकर पे ठोकर न मार।
कभी कभार पत्थर भी बन जाता है तलवार की धार।।
पत्थर समझ के ए ज़माना, मुझे ठोकर पे ठोकर न मार।
कभी कभार पत्थर भी बन जाता है तलवार की धार।।
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