तीसरी नज़र
जीवन की है कठोर डगर,बढने से पहले तू संवर
लक्ष्य हासिल करना है अगर,खोल ले तीसरी नजर।
मासूम तुम्हारा चित जितना
ये दुनिया उतनी मासूम नहीं
प्रश्न खङा होगा तुझ पे सरे शाम सुबह चारों पहर।
कुछ जन के चितवन ऐसे हैं
जिनके चेहरे पे कई चेहरे हैं
मंसा क्या है उनका ,कुछ सोच, थोङा सा ठहर।
पग- पग की बाधाओं से डट के करना सामना
देर सही अंधेर नहीं पूरी होगी तेरी साधना
विचलित मत हो नीलकंठ बन पी ले ज़हर
लक्ष्य को हासिल करना है अगर
खोल ले तू अपनी तीसरी नज़र ।
Nice👍
nice
Badiya 👍
वाह
अच्छी कविता
Nice
बढ़ने
खड़ा
सरे आम
या शाम
उत्तम रचना