तेरे ये होंठ जानते है , मेरी सब हसरतें
होठों को होठों से यूँ तुम दबाते क्यूँ हो
बेचैनियां मेरी रोज यूँ तुम बढ़ाते क्यूँ हो ।।
तेरे ये होंठ जानते है , मेरी सब हसरतें
अगर बेखबर हो ,तो तुम शर्माते क्यूँ हो ।।
मुझ से आने लगी तेरी साँसों की खुशबु
हथेलियो में मेरा नाम यूँ लिखाते क्यूँ हो ।।
ये इश्क़ नहीं तुम को तो और ये क्या है
किसी ने टोका नहीं, यूँ मुस्कुराते क्यूँ हो ।।
हो के परेशान पढ़ने लगते हो क्यूँ आयते
हिचकियों से तुम , इतना घबरातें क्यूँ हो ।।
कैसी साजिश है मेरे क़त्ल की ए क़ातिल
नजर मिला के फिर नजरें यूँ चुराते क्यूँ हो ।।
है इश्क़ तो खुल कर इजहार कीजिये ना,
रोज मेरी किताब में गुलाब छिपाते क्यूँ हो ।।
खोले नहीं ख़त तुने मेरे अगर आज तक
तो बता ग़ज़ले-पुरव फिर गुनगुनाते क्यूँ हो ।।
पुरव गोयल
उम्दा
shukriya sahab ji housla afazai keliye
So Nice
shukriya sahab ji housla afazai keliye