नव वर्ष आई

गुजं उठी चहू दिश
नव वर्ष की नव शहनाई।
करवट बदलती आसमां पे छाई,
नव किरण लै पुरवाई आई।
उमंगों भरा उत्सव गीत आज,
चहकती चहचहाती चिडि़यों ने गाई।
नव वर्ष देख बागों की,
खिल उठी मादक पुष्पाई।
रवि लिये नया सबेरा,
स्वर्णिम किरण बिखराई।
नव वर्ष आई- नव वर्ष आई,
गुजं उठी नव शहनाई।

योगेन्द्र कुमार निषाद ,घरघोड़ा ( छ.ग.)

Related Articles

नया साल

ग़ज़ल कुछ एेसा नया साल हो। अपने आप मे बेमिशाल हो। महगी थी यह वर्ष बीत गई, कुछ सस्ता नया साल हो। कुछ तो यादें…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

+

New Report

Close