फितरत
फितरत किसी इंसान की
बदलती नहीं जनाब।
चाहे जिंदगी में आ पड़े
कितने भी अजाब।
बचपन की आदतें समाई होती हैं
इस कदर,
बदला यदि खुद को
तो नया इंसान ले जन्म।
बचपन सुधारा जिसने
वही इंसान बन पाया,
वरना संसार में जीना तो
कीड़े मकोड़ों ने भी पाया।
निमिषा सिंघल
बहुत खूब
Thank you
बेहतरीन
आभार दिल से
Nice
धन्यवाद
वाह बहुत सुंदर रचना
हार्दिक आभार
Wah
सही