बदलता ज़माना
सूना था वक़्त रुकता नहीं, बहता है, बदलता है, बस राह अपनी;
जाने कब खो गए वो दिन प्यारे
जाने कब छूट गए वो लोग सारे,
बच गई तो बस कुछ एहसास न्यारी,
रूठ गई क्या हमसे ये ज़िंदगी प्यारी?
बदल गई क्या वो सूरज की रोशनी निराली,
बदल गई क्या वो चिड़ियों की ची ची प्यारी,
या बदल गई पवन की शीतलता सारी,
बदल गई क्या बचपन की कोमलता क्या री?
बदल गई क्या मानवता की जीविका सारी,
बदल गई किताबो की पंक्तियाँ सारी,
रूठ गई क्या हमसे ये ज़िंदगी प्यारी?
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बेहद खूबसूरत अहसास & अल्फ़ाज!
@panna you may read more on kreatiwitty.com
simply…..khubsurat!!
thanks ankit,you may read more on kreatiwitty.com and help me give more feedback
sure!! 🙂
बच गई तो बस कुछ एहसास न्यारी,….wah..sahi kaha aapne!
वाह बहुत सुंदर
बदल गई क्या मानवता की जीविका सारी,
बदल गई किताबो की पंक्तियाँ सारी,
रूठ गई क्या हमसे ये ज़िंदगी प्यारी?
वाह वाह