बहार- ए-गुलशन बुला रहा है
चले भी आओ मनमीत मेरे
बहार- ए-गुलशन बुला रहा है।
सजाई महफिल है प्रीत मेरे
बहार- ए-गुलशन बुला रहा है।।
नजरों के आगे तुम्हारा डेरा
धड़कनों में समाए हुए हो।
जस्न-ए-मुहब्बत करीब अपने
काहे को देरी लगाए हुए हो।
रस्म -ए-वफा के संगीत मेरे
बहार- ए-गुलशन बुला रहा है।।
wah
धन्यवाद
Bahut khub
Shukria
Nice
Thanks
Radhay Krishna
Radhe Radhe
सुंदर रचना
धन्यवाद
वाह
वाह
वाह