बूढ़ा

जिनको ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया,
जिनको देकर सहारा आगे बढ़ना सिखाया,
वो सब आज हाथ छुड़ाने लगे,
देखो बूढ़ा कह कर वो सताने लगे,
जिनको अपना बनाया वो सपना था मेरा,
कह कर आज मुझको जगाने लगे,
मैं भी ज़िद पर अड़ा हूँ, देखो कैसे खड़ा हूँ,
बदलता है वक्त देखो ठहरता नहीं है,
जो बोता है हर शय वो काटता वही है,
जो बचपन है बूढ़ा भी होता सही है॥
राही (अंजाना)
nice emotional poetry
Thanks dada
Good