बैचैन दिल
वह घड़ी बड़ी अजीब थी!
आजिज था मन
खुद अपने आप से।
क्या ना कहा !
क्या ना सुना!
अपने आप से।
बेचैन था दिल
दूर जा रही पदचाप से।
धुंधला रहा था वजूद …..
आंसुओं की भाप से।
निगाहें थी …
कि
हट ही नहीं रही थी।
भयभीत था दिल
एकाकीपन के श्राप से।
सीने में थी जलन,
आंखों में थे
हजारों सवाल,
जिन का हल पूछ रही थी
मैं अपने आप से।
निमिषा सिंघल
वाह
🌺🙏
Thanks
Thank you
वाह बहुत सुंदर
🙏🙏🌺🌺
Nice
💓💓💓💓
Nice
🙏🙏🙏🙏
Wah
🌹🌹🌹🌹
Wah
🚶♂️🚶♂️