भाईदूज की मिठाई..!!
अपने भाई दूज की तुमको
खिला मिठाई
आँखों में थी हया
ग्लास पानी का लाई…
तुम तिरछी नज़रों से
मुझको यूँ देख रहे थे
मन ही मन में कितने
लड्डू फूट रहे थे…
ना तुम बोले ना हम बोले
दोनों में यूँ लाज भरी थी
कुछ मजबूरी भी थी
क्योंकि घरवाले भी देख रहे थे…
मैं बोली इसी लायक हो तुम
भाई दूज की खाओ मिठाई
तुमने कितनी तैश में
मुझको प्लेट घुमाई…
तब तक पीछे से आ
धमकीं मेरी भौजाई
तुम फिर से खाने लगे
लड्डू और मिठाई…
मैं रोंक सकी ना खुद को
हँसी जोर से आई
हालातों ने कुछ ऐसी
प्रेम की वाट’ लगाई…
अरे वाह, क्या उल्लू बनाया….. सुंदर हास्य रचना ।
Thanks
😊😊😊😊✍👌👌👌👍😃
बहुत खूबसूरत रचना
धन्यवाद
हास्य शैली से परिपूर्ण बहुत सुंदर पंक्तियां
धऩ्यवाद
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
आखीरकार मिठाई तो मिठाई ही होती हैं
कुछ नहीं होता खाने से 😊
हा हा हा
सही कहा
वाह वाह क्या बात है प्रज्ञा जी
बहुत हीं सुन्दर प्रस्तुति
धन्यवाद
Thanks