मनोभाव
आरोपों के कठघरे में खड़े हो चाहे,
या प्रशस्ति पाने उठे हो पैर हमारे।
प्रशंसाओं में कभी हम फूले नहीं,
इल्जामों से चिंताओं में डूबे नहीं।
कभी कभी पीठ पर खंजर भी खाए,
पर कभी स्वार्थ के लिए रिश्ते ना बनाए।
चाहे कभी किसी के खातिर कुछ नहीं किया,
पर कभी किसी को भूलकर दुख नहीं दिया।
अपने अधिकारों को कभी मरने नही दिया ,
उम्मीदो का दीपक कभी बुझने नहीं दिया ।
कभी किसी गलत का साथ नही दिया,
मैने तो सदा अपने मन का किया।
सदा अपना कर्म करता रहा,
चाहे जो हो परिणाम आगे बढ़ता रहा।
जिसने साथ दिया उनका आभार व्यक्त किया,
साथ छोड़ने वालों से भी नहीं मुझको कोई गिला।
कभी किसी को नीचा दिखाया नहीं,
आचरण विरूद्ध कर्म कर कभी कुछ पाया नहीं।
सुखो और दुखो को समय का फेर जाना,
सौभाग्य और दुर्भाग्य को कर्म का खेल माना।
मृत्यु तो नियति मरने से नहीं डरता हूं,
उन्मुक्त उल्लासित करने वाले ही कार्य करता हूं।
चाहे आंखो का पानी हो या सुख दुख की कहानी को कभी व्यर्थ नहीं जाने दिया,
हमेशा अपने मन के भावों को कलम की स्याही में मिलाकर मैंने काव्य बना दिया।
✍️मयंक✍️
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Satish Pandey - September 1, 2020, 12:23 pm
अतिसुन्दर काव्य प्रतिभा
Geeta kumari - September 1, 2020, 12:34 pm
✍️✍️👏👏
Geeta kumari - September 1, 2020, 12:36 pm
बेहतरीन प्रस्तुति
Rishi Kumar - September 1, 2020, 1:00 pm
अति सुंदर काव्य प्रतिभा
Mayank Vyas - September 2, 2020, 9:50 am
धन्यवाद 🙏🙏🙏