मयुख
कंचन सो तेरो रंग री बावरी
मुख पे कमल की लाली है
हंसों का सिरताज ले बैठी
अब भी झोली खाली है
चीर सरोवर तल में झांकें
तू तो बड़ी मतवाली है
कहते सब संसार को मोहि
तु मृगतृष्णा वाली है
ऊंचे गिरी हिमराज को आकर
सुंदर ताज चढ़ाती हूं
नदी धार मोती की माला
अपनी छवि सजाती हूं
जिन वृक्षन की डालन खेली
उन्हीं में आग लगाई है
हम तो चलो संसार के प्राणी
तू तो सुर की जाई है
आलिंगन में ले ना चाहूँ
सुर संग ऊपर आती हूँ
जब भी प्रण को हाथ लगाउ
राख सामने पाती हूं
घाव अभी ना भरे मेदनी
जख्म पुरानी चोट के
दिनकर ने गोदी में लेके
रक्त पिलाया घोट के
Dharti aur Suraj ki pehli Kiran ke bich samvad
मनमोहक मनहर सुखदायक भावना बड़ी मतवाली है।
विनयचंद निज मन मंदिर में तव कविता सम्हाली है।।
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
Very good
Thankyou
❤️❤️
🙏🙏
Good