महाकाल

तीय विलापम में शुद्ध अपनी विषारी
शक्तिहीन हुए शक्तिशाली
विलाप में भयानक रूप धरा था
शांत करें ब्रम्हा और त्रिपुरारी
त्राहि-त्राहि हो सर्वत्र
नटराजन बदले नक्षत्र
बलशाली भी भय से कँपे
शिव के सामने उठे ना शास्त्र
सुर ,असुर, नर जिनसे डरते
त्रिलोक यह कांपने लगते
क्रोध में जब शिव तांडव करते
लोचन रक्त था त्रिलोचन के
यम भी भागे नयन बोचके
क्रोध में पावक वर्षा करते
प्रलय रूप में अनल अगोचर
गले पड़ी मुंडो की माल
जटा जूट की जटा विशाल
शंकर के सिर भस्म की राख
कालो से ऊपर है महाकाल

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