मिटा देना मसल कर तू

मिटा देना मसल कर तू
मेरी हस्ती को जूते से,
चींटी हूँ नन्हीं सी
क्या पता डंक मारूंगी।
मेरे जीने का हक बस तू
इसी चिन्ता में खा लेना
कि चींटी हूँ जरा सी
क्या पता कल डंक मारूंगी

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Responses

  1. सामने वाले को आगाह करती हुई रचना है या छोटे लोगों की वेदना का चित्रण। मैं दुविधा में हूं।कृपया मार्ग – दर्शन करें सतीश जी

      1. वाह, बहुत ही सुन्दर तरीके से छोटे लोगों की वेदना का वर्णन किया है आपने।आप बहुत सहृदय हैं ,सतीश सर।

      2. भाव की गहराई तक आप जैसा सच्चा कवि ही पहुँच सकता है, सादर धन्यवाद

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