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राम-नाम

डूब वहाँ, मोती जहाँ, कंकड़ मत तू छान सुख-माणिक का सिंधु बस, राम नाम ही जान “मैं”, “मेरा” ही जगत में, सब कष्टों का मूल “तू”, “तेरा”…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

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