मीनाकुमारी —- एक भावांजलि
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“ कहते हैं ज़माने में सिला; नहीं मिलता मुहब्बत का ।
हमको तो मुहब्बत ने; इक हसीं दर्द दिया है ॥ “
: अनुपम त्रिपाठी
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मीनकुमारी ! ……….. ये नाम ज़ेहन में आते ही आँखों के सामने हिन्दी चल—चित्रपट–फ़लक की ‘वह’ मशहूर अदाकारा साकार हो उठती है, जिसने नारी—चरित्र के वे अनूठे आयाम प्रस्तुत किए कि; नारी—मन की थाह एक पहेली सी बन गई । “ अबला जीवन हाय ! तेरी यही कहानी ……” को अमूमन जीने लगी थी ——- अपनी निजी और फिल्मी ज़िंदगी में ……. मीनकुमारी । उनका व्यक्तिगत जीवन जितना ‘उथल—पुथल’ भरा रहा —— उतना ही परिष्कृत था : बे—मिसाल अभिनय । सु—कवि गुलज़ार ने; मीनकुमारी की वसीयत के अनुसार, उनकी शायरी का अपने कुशल सम्पादन में प्रकाशन किया ।
“ दर्द के दस्तावेज़ सा “ यह रचना—सफ़र दिलो—दिमाग में उतरता-–सा जाता है । ऐसा लगता है, मानो; हम जीवन की जिजीविषा और चाहतों की रवानी से जूझते, एक अंधी—लंबी सुरंग से होकर गुज़र रहे हों ज़िंदगी भर ‘वह’ जिस प्यार की तलाश में बद—हवास भटकती रही …….. उसी के प्रति अगाध समर्पण भाव उसकी अदाकारी में झलकता रहा । एक ख़ालिस भारतीय नारी का बेजोड़ अभिनय । प्रेम की प्यासी …… अपने हक़ के लिए लड़ती ……. इंतज़ार और समर्पण की जीवंत—गाथा । अंतत: सहारा मिला भी तो ……… शराब का । मीनकुमारी और शराब ने ‘एक—दूसरे’ को जी—भर कर पीया । सारी कड़वाहट “ दर्द का दरिया “ बन कर छलक—छलक उठती है, उनके अभिनय और शायरी में । शराब को जीतना ही था …… जीत गई ।
लेकिन; मीनकुमारी भी कहाँ हारी ?
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“ किस—किसको मयस्सर है, यहाँ इंतज़ार यारां !
कौन मुंतज़िर है ‘अनुपम’, बहारों की राह में ?”
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एक भावांजलि मीनकुमारी को
[ ‘नाज़’ मीनकुमारी का निक—नेम ]
ऐ; “नाज़” !
क्यूँ आई थीं, तुम
आबलापा इस दस्त में
जबकि; मालूम था तुम्हें
यहाँ; शूलों के सिवा कुछ नहीं
———–कुछ भी नहीं
उफ़क के रहरौ ने सरशार किया है इसको
हर निदा पे हमनसफ़ हिसार में आया
मुसलसल मौहूम मुसर्रत के लिए
रेज़ा—रेज़ा अजीयत उठाया तुमने
क्या तुम्हें;
ये ख़बर भी नहीं थी
इसकी माज़ी को तो देखा होता
कि; “ ये इश्क़ नहीं आसां इतना “
बोसीदा तनवीरें, तआकुब का एतिकाद किए
ले चुकीं हैं; गिरफ़्त में शिकवे—वादे
प्यार का अहसास, अलम—ओ—यास से रेगज़ार हुआ
नफ़स—नफ़स में एक शादाब तसव्वुर छाया हुआ
ऐ; “नाज़” !
अज़ल का तवील सफ़र है, ये !!
सकूत की मुकहम तकसीन का मज़र है, ये
संदली—शफ़क; लाफ़ानी वहमा है, ताबानियों का
“ ये, इश्क़ नहीं आसां इतना “
: अनुपम त्रिपाठी
#anupamtripathi
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शब्दार्थ
आबलापा – छाले पड़े पाँवों वाला / दश्त – मरूस्थल / उफ़क – क्षितिज /
रहरौ—पथिक / सरशार—उन्मत्त / निदा—आवाज़ / हमनसफ़ – साथी /
हिसार – परिधि / मुसलसल—लगातार / मौहूम—भ्रामक / मसर्रत—खुशी /
रेज़ा—रेज़ा – कण—कण / अजीयत—कष्ट / माज़ी – अतीत /
बोसीदा — जीर्ण—शीर्ण / तनवीरें – रौशनी / तआकुब – अनुसरण /
एतिकाद—विश्वास / गिरफ़्त—क़ैद, जकड़ / शिकवे — शिकायत /
‘अलम—ओ—यास’ – निराशा / रेगज़ार—मरुस्थल /
‘नफ़स—नफ़स’ में — सांस–दर—सांस / शादाब—मादक / तसव्वुर – कल्पना /
अज़ल—अनंत / संदली—चन्दन सा / शफ़क – सूरज की लालिमा /
लाफ़ानी – भ्रामक / वहमा – दृष्टि—भ्रम / ताबानियां—प्रकाश /
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Udit jindal - July 23, 2016, 10:29 pm
bahut khoob janaab
anupam tripathi - July 23, 2016, 10:40 pm
thanks utitji
महेश गुप्ता जौनपुरी - September 12, 2019, 11:10 pm
वाह