मुक्तक 21
बड़ी सिद्दत से चाहा था ख़ुदा के नूर को मैंने ,
मेरी नीयत भी पाकीज़ा थी मगर इकरार ही न हुआ..
…atr
बड़ी सिद्दत से चाहा था ख़ुदा के नूर को मैंने ,
मेरी नीयत भी पाकीज़ा थी मगर इकरार ही न हुआ..
…atr
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इकरार भी हो जाता ग़र तुम ठहरते उधर जरा और
खुदा के घर में देर है, अंधेर नहीं !
haha.. dhanyavad ,.. aabhar
nice lines!
Badhiya …1
thank u sir..
Good
बहुत खूब