मुक्तक 21

बड़ी सिद्दत से चाहा था ख़ुदा के नूर को मैंने ,

मेरी नीयत भी पाकीज़ा थी मगर इकरार ही न हुआ..

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यादें

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Responses

  1. इकरार भी हो जाता ग़र तुम ठहरते उधर जरा और
    खुदा के घर में देर है, अंधेर नहीं !

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