मेरे महबूब
मेरे महबूब को देख, चाँद भी शरमाया है।
मेरा माहताब जो ज़मीं पर उतर आया है।
चाँद भी कहीं, देखो बादलों में छुप गया,
अक्स देख तेरा, रश्क से मुँह छिपाया है।
ऐ चाँद, तेरी चाँदनी की जरूरत नहीं मुझे,
मेरे महबूब के नूर से सारा समाँ नहाया है।
कोशिशें लाख कर ली, नज़रें हटती नहीं,
तुमने हुस्नो-नज़ाकत कुछ ऐसा पाया है।
बेशक हमने, कमाई नहीं दौलत बेशुमार,
तेरी मोहब्बत का साया, मेरा सरमाया है।
देवेश साखरे ‘देव’
अक्स- प्रतिबिम्ब, रश्क- ईर्ष्या, सरमाया- संपत्ति
काबिल -ए-तारीफ़
Thanks
Bahut khub
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nice
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Bahot khub
शुक्रिया
वाह
धन्यवाद
सुन्दर
धन्यवाद
आपको बधाई
वाह
धन्यवाद
खूबसूरत