मैं रोज नशा करता हूँ… गम रोज गलत होता है…
इक हाथ सम्हलती बोतल…
दूजे में ख़त होता है…
मैं रोज नशा करता हूँ…
गम रोज गलत होता है…
तरकश पे तीर चड़ाकर…
बेचूक निशाना साधूँ…
उस वक्त गुजरना उनका…
हर तीर गलत होता है…
मिटटी के खिलौने रचकर…
फिर प्यार पलाने वाली…
गलती तो खुदा करता है…
इन्सान गलत होता है…
तुम जश्न कहो या मातम…
हर रोज मनाता हूँ मैं…
मैं रोज नशा करता हूँ…
गम रोज गलत होता है…
– सोनित
umda
thanks avantika ji.
वाह
वाह