ये वो कली है जो अब मुरझाने लगी है..
कश्तियाँ समंदर को ठुकराने लगी है..
तुमसे भी बगावत की बू आने लगी है..
मत पूछिए क्या शहर में चर्चा है इन दिनों..
मुर्दों की शक्ल फिर से मुस्कुराने लगी है..
मैं सोचता हूँ इन चबूतरों पे बैठ कर..
गलियाँ बदल-बदल के क्यूँ वो जाने लगी है..
गुजरे हुए उस वक़्त की बेशर्मी मिली थी कल..
वो आज की हया से भी शर्माने लगी है..
किस चीज को कहूँ अब इंसान बताओ..
ये वो कली है जो अब मुरझाने लगी है..
-सोनित
Bahut khoob
thank you manohar bhai.
Mast lines he
thank you anupriya ji
बहुत अच्छे
thanks anil bhai
Umda
thanks sridhar ji
वाह बहुत सुंदर रचना
Wah