रंगीन दुनिया में अब बस लहू नजर आता है

न चिराग नजर आता है, ना आफ़ताब नजर आता है

भीड है चारों तरफ़ मगर, ना कोई इंसान नजर आता है

रंगो की ख्वाहिश थी इस दिल को दुनिया मे बिखेरने क़ि

क्या करे रंगीन दुनिया में अब बस लहू नजर आता है

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

यादें

बेवजह, बेसबब सी खुशी जाने क्यों थीं? चुपके से यादें मेरे दिल में समायीं थीं, अकेले नहीं, काफ़िला संग लाईं थीं, मेरे साथ दोस्ती निभाने…

Responses

New Report

Close