रशमें – ए – इश्क़
जब महफ़िल – ए – इश्क़ में , निग़ाह से निग़ाह टकराई …
दिल की बात चेहरे पर उभर आई ….
अँधेरे में डूबे मेरे एक एक लम्हे को रोशन करने ….
उसने क्या ख़ूब कंदीले – ए – मुस्कराहट जलाई ….
ख़ामोश थी उसकी जुबां , ख़ामोश एक एक अल्फ़ाज़ ….
मुझे अपने दिल की और ले जाने , स्वागत में उसने पलके बिछाई…
मैं तो वाकिफ़ था नशा – ए – उल्फ़त से …..
वो एक मरतबा फिर ज़ाम – ए – चाहत बना लाई …
बिखरें इस सुख़नवर को , क्या खूब मोहब्त से समेटा उसने …
एक अलग अंदाज़ में रशमें – ए – इश्क़ निभाई ….
इश्क़ के वसन में कुछ यूं लपेटा उसने ख़ुद को ….
मेरे साथ रहने , बन गयी मेरी परछाई …
ख़ुशी हुई मिलकर उस से इस क़दर , पंकजोम ” प्रेम ”
की दूर हो गयी बरसों पुरानी तन्हाई …..
लाजबाव जनाब
Sukkriya bro
nice poem..really awesome!!!!!!
congratulations for poet of the month!!!!!
Tnx ji ye to ap sb ki inayat h. Anjaki ji
Good
इश्क़ के वसन में कुछ यूं लपेटा उसने ख़ुद को ….
मेरे साथ रहने , बन गयी मेरी परछाई …।वाह वाह
बहुत खूब