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ग़ज़ल

ये मदहोश शाम और तन्हाई का आलम अपनों के बारे में न सोचते तो क्या सोचते   करीब-ए-मर्क़ है फिर भी अकेले इसलिये खबरी के…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

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