रिश्तों की मौत
रिश्तों की मौत
रिश्तों के मरने का
है अपना ही अंदाज़
तासीर मरे रिश्तों की
है लम्बी बीमारी सी
पल पल मारती
पर मरने नही देती
मरा हुआ रिश्ता
मरा हुआ इनसान
जान दोनों में नही होती
फर्क सिर्फ़ इतना
मरे हुए इनसान को
विधि से मिट्टी में दफना देते
और मरे रिश्तों के बोझ में
हम ख़ुद को
ज़िन्दगी भर दफना देते
अब यूई
मज़्हबो की किताबों में
मरे रिश्तों को दफनाने का
कोई सलीका ढूँढता
ख़ुद को कब्र से
बाहर रखने का तरीका ढूँढता
…… यूई
aapki kavita ka andaaz nirala he…pata nahi jazbaato ko lafzo me aapne kaise dhaala he!
Thanks Dear Panna for your kind words please. With all love
Good
मज़्हबो की किताबों में
मरे रिश्तों को दफनाने का
कोई सलीका ढूँढता
ख़ुद को कब्र से
बाहर रखने का तरीका ढूँढता
वाह वाह