वनिता
हे कांता! कौन सी मिट्टी से बनी हो तुम
अपनी इच्छाओं का दमन कर
कैसे रह पाती हो हंसती मुस्कराती तुम?
वाकई बेमिसाल हो तुम।
हे स्त्री!
कैसे हर परिस्थिति में खुद को ढाल कर
सामंजस्य बिठा पाती हो तुम?
सच में कमाल हो तुम।
हे कामिनी!
शारीरिक और मानसिक सौंदर्य से ओतप्रोत
रति!
अपने प्रियतम के प्राण हो तुम।
हे ललना!
वात्सल्य रस का झरना
चंदन के समान हो तुम।
हे रमनी!
झकझोरता हे तेरा सेवा भाव,
तेरा क्षमाशील व्यवहार।
आखिर क्या है तेरी मिट्टी में?
तपकर बन गई है तू
सिर्फ वनिता नहीं
देवात्मा!
निमिषा सिंघल
सुन्दर रचना
Thanks
Dhanyavad
Sunder
Wah
Thank you
Nice
🙏🙏
बेहतरीन
स्त्री