वह भिखारी
वह भिखारी
मलिन मटमैला फटा पट
पहने था वह पथवासी
नमित निगाहे नित पथ पर
नयनों से नीर निकलता
विदीर्ण करता ह्रदय
अपने भाग्य पर
कांपते हाथों में कटोरा
स्कंध पर उसके परिवार का बोझ
दो दिवस से भूखे
बाल का सहारा भिखारी
जिसके सम्मुख अब
पथ की ठोकरे भी हारी
बेबस कंठ ने साथ छोड दिया
पग भी पथ पर रुकते है
बच्चों की सूरत याद आने पर
दयनीय द्रग द्रवित हो उठते है
तरणी है बीच मझधार में
कब कूल तक पहुंचेगी
इस इंतजार में
नत हुआ , म्रत हुआ
वह भिखारी
बहुत खूब