‘विचारों का मंथन’
उत्प्लावन करती
हृदय में,
अतृप्त अवांछित आकांक्षाएं
संकीर्ण एवं सूक्ष्म
वेग के व्याकरण’ गढ़ती हैं
असंतृप्त आस्थाओं का प्रतीत प्रेम
मधुमास की मधुर
गर्जना करता है और
ले जाता है
पीपल की घनी छांव में,
जहाँ मधुर गुञ्जन करती हुई
मधुप यौवनीय मधुयामिनी
संगिनी सुंदरियां
प्रेम के भावातिरेक में
मधुर-मधुर कल्पनाएं करती हैं
वही से प्रस्फुटित होती हैं
हृदय में सृजन की
असीमित, अनसुलझी,
अलिखित, अव्यक्त भावनाएं और
आरम्भ होता है
विचारों का मंथन…!!
वाह, बहुत खूब
धन्यवाद आपका
अतिसुंदर
धन्यवाद