शजर
तेरे हाथ सौगात, मेरे हाथ भी सौगात।
मेरे मन में पाप और तेरे नेक जज़्बात।
तुमने दिया हमें, जीने की नेमतें सारी,
मैं खुदगर्ज तुझपे करता रहा आघात।
मिटा कर वज़ूद तेरा, किसे छला मैंने,
तेरे बगैर मेरी, कुछ भी नहीं औकात।
शजर की कीमत ना समझी अब अगर,
बद से बदतर होते जाएंगे फिर हालात।
देवेश साखरे ‘देव’
शजर- पेड़
अतिसुंदर भाव
आभार आपका
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वेलकम
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