शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।।
शायर विकास कुमार
1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां में । करतुते तो तु करती मेरी जहां में, हम तो हरवक्त खामोश रहते हैं तेरी जहां में ।।
विकास कुमार
2. अब कैसा सिला है वफा का, अब तो वो भी थक गई बेवफाई से । हम खामोश हैं, और वो शान्त ।।
विकास कुमार
3. मेरी सोच हैं तु, मेरी विचार है तु, मेरी शेर है तु, मेरी शायरी हैं तु, मेरी कलम उठाने की वजह है तु । हर चीज है जहां में तु मेरे लिए ।।
विकास कुमार
4. नादान थे हम, समझदार थे तुम । इसलिए तो बेवफा निकले तुम और तन्हा रहे हम ।।
विकास कुमार
5. किसी की जरूरत हो सकती हो तुम । मेरी तो बस ख्याब हो तुम । ख्याब थी, ख्याब है, और ख्याब ही रहेगी ।।
विकास कुमार
6. कुछ था, कुछ है और कुछ होंगे, अपनी जिन्दगी के अधुरे सपने । तु गैर के बाहों में सोयेगी, हम गहराइयों में डूब जायेंगे ।।
विकास कुमार
7. बिखड़ी जुल्फें देखकर यूँ ऐसा लगा कि अपनी जिन्दगी में बहार आने वाला है । कमबख्त़ दिल को क्या मालूम था? उन्हें तो बिखड़ाकर जुल्फें चलने की अदा है ।।
विकास कुमार
8. ये कीबोर्ड तो नहीं, ये जिन्दगी की राहें है । इसमें स्पीड नहीं, बारिकियाँ जरूरी है ।।
विकास कुमार
9. मोह रूलाती, मुहब्बत रूलाती और कुछ बेनाम रिश्ते भी रूलाती । कमबख़्त बेनाम जिन्दगी भी खुब रूलाती ।।
विकास कुमार
10. उसकी हर एक बेवफाई की सलीका से वाकिफ़ थे हम । फिर भी कमबख्त ये दिल! उनसे मुहब्बत कर बैठा ।।
विकास कुमार
11. वो मनाये और मैं रूठूँ, वो सिलसिला ना दे प्रभु! अब सदा-सदा के लिए खामोश कर दे प्रभु!
विकास कुमार
12. ये जुल्फ नहीं, ये तो घनघोर घटा है बादल की । कभी बरसे तो सावन के महीनों में ।।
विकास कुमार
13. हम उनको चाहे, वो किसी और को चाहे । कमबख्त ये मुहब्बत है या उलझी पहेली । कभी मरके जिये तो, कभी जी के मरे ।।
विकास कुमार
14. जहां की दौलत है जहां के पास, पर वो नहीं है, जहां के पास, जो हैं मेरे पास ।।
विकास कुमार
15. कभी ख्याबों में तेरी जुल्फें तले सोये थे हम । जहांवालों ने आग लगा दी तेरी जुल्फ में । रूठ़ गई तु, सोये रह गये हम ।।
विकास कुमार
16. बेरंग थी जिन्दगी रंग लायी थी तुम । कुछ साथ क्या छूटा? खो गये तुम, बिखड़ गये हम ।।
विकास कुमार
17. बेमतलब थी अपनी मुहब्बत, कमबख्त दिल हरवक्त मतलब ढ़ूढती । खोये-खोये थे तुम, बिखड़े-बिछड़े थे हम ।।
विकास कुमार
18. रूख ये वक्त का, कुछ तो साथ दिया । हम शायर बने तेरी शायरी का ।।
विकास कुमार
19. आती है मन में अभी-भी वो छवि । तेरा मुस्कुराना और खामोश रहना मेरा ।।
विकास कुमार
20. जहां के नियम है, जहां में । वो बदले गये जहां के साथ ।।
विकास कुमार
21. क्या हाल था? क्या हाल है? क्या हाल होगा? दोस्त ने दुश्मनी निभाई, दुश्मन ने दोस्ती निभाई । अब सिला है कैसा वफा का वेवफा भी वफा निभाई।
विकास कुमार
22. कुछ हद तक तेरी वेबफाई सही थी । अब वेबफाई भी तंग आ चुकी है तुझसे।
विकास कुमार
23. सवाल करें तो जवाब मिले, उनके आशिकों से । कमबख्त तेरी औकात क्या थी?
विकास कुमार
24. सबाल करें तो जवाब मिले, उनकी खामोशी का । वो हँस के बोले, अदा तो मेरी व्यवहार है जीने की ।।
विकास कुमार
25. थकती हैं मस्तिष्क आती है नींद, पर सोने का नहीं । ताजा होकर, फिर से पढ़ने, लिखने व कुछ नया सोचने का ।।
विकास कुमार
26. मुझे क्या मालुम था? मेरे शेर मुझे ही पलटवार करेगा । कमबख्त ये दिल का मामला है, कभी अश्क बहने नहीं दिया ।।
विकास कुमार
27. कभी देखकर मुस्कुराना, और सखियों (गैरों) से बात करना, उनकी आदत बन चुकी थी । अब वो दौर है, कमबख्त नजर तक नहीं मिलती ।।
विकास कुमार
28. तेरी हँसी को मुहब्बत समझे, वो नादान आशिक थे हम । हमारी आशियाना में आग लगायी, वो अहं लड़की थी तुम ।।
विकास कुमार
29. रूठ़ी मुहब्बत शेर नहीं लिखती, उनकी खामोशियाँ गुमनाम बाजार में बिकती है ।।
विकास कुमार
30. कभी नैनों से झर-झर झरते थे नीर, अब ना मुहब्बत रही ना लगाव ।।
विकास कुमार
31. कभी ख्याबों में जीते थे, अब वास्तविक में मरते है । उनके लिए जो कभी मेरे लिए कभी ख्याब में जीते थे, और कड़कड़ाती तेज धूप में कमाते हैं।।
विकास कुमार
32. मगरमच्छ के आँसु तो अब बहते नहीं, अब प्रीत के आँसु क्या बहाऊँ।।
विकास कुमार
33. अब दिन कटती है, चैन से । रात आती है नींद । वेपनाह थी तेरी मुहब्बत, और बेवफा थे हम ।।
विकास कुमार
34. उलझे-उलझे सुलझ गये हम । यार ने यारी दिखाई संभल गये हम ।।
विकास कुमार
35. लैला तो हम तुझे कह नहीं सकते, हीर तो तू हैं नही, सोहनी वाली तेरी आदत नहीं, जुलिएट की परछाई तुझमें कहीं देखती नहीं, बता संगदिल क्या नाम दूँ तुझे ।।
विकास कुमार
36. पत्थर बना था दिल मेरा, मोम बनाय था तुमने । अब रूठ़ी हो तुम, मनाते है हम ।।
विकास कुमार
37. हर दर्द की दवा हैं जहां में , कोई हँस के पीये तो कोई रो के ।।
विकास कुमार
38. मुस्कुराहट खामोशी की बात बयां करती ।।
विकास कुमार
39. खामोशियाँ इजहार की पहली पहल होती । जो समझते सो प्यार करते। कुछ दिल, कुछ दिमाग व कुछ जज़बात से खेलते ।।
विकास कुमार
40. बेवफाई की सजा और यारों की दगाबाजी इंसान को बहुत समझदार बना देता है । एक दिल मुहब्बत नहीं करता, और दूसरी विश्वास नहीं करता यारों पर ।।
विकास कुमार
41. दिल तोड़ना ही था, तो दिल लगाना ही क्यूँ? कहीं जाना ही था, तो फिर सुनसान बेरंग नगरी में अपनी जुल्फों की बहार व रंग की होली आया ही क्यूँ? कमबख्त! ये तेरी मुहब्बत है या दिल उजाड़ने की आदत । कभी हँस के रोये तो कभी रो के हँसे । तेरी बेवफाई का आलम भी कुछ ऐसा था । तुझे गैर की बाहों में सोना ही था. तो फिर अपनी बाहों का सहारा दिया ही क्यूँ?
विकास कुमार
42. जाओ नई सिरे से अपनी नयी जिन्दगी जीना । गैरों को भूलाकर, अपनों को याद करना, याद ये भी करना गैर दिल में और अपना दिमाग में बसते हैं । हर एक कदम सोच-समझकर उठाना । खेलने के खिलौने है जहां में हजार । किसी की जिन्दगी बनकर, किसी के जिन्दगी से मत खेलना । टूट जाते हैं, अक्सर वो रिश्ते, जिनकी बुनियाद शक की जमीं पर ठहरी होती, क्योंकि मुहब्बत साख की जमीं पर थमी होती । खास क्या लिखूँ मेरी जान! मेरी बुत! मेरी प्रेरणा!– जहां की खुशियाँ झुके तेरी कदम में , हर एक वला तेरी नसीब की लगे हमें।।
विकास कुमार
43. खेलने के लिये खिलौने हैं जहां में हजार । फिर ये कमबख्त! दिल ही क्यूँ जहां के लिये ।।
विकास कुमार
44. टूट जाते हैं, अक्सर वो रिश्ते जिनकी बुनियाद शक की जमीं पे ठहरी होती , क्योंकि मुहब्बत साख की जमीं पे थमी होती ।।
विकास कुमार
45. जहां भी टिप्पणियाँ करती, तुम अच्छी शेर लिखते हो । उन्हें क्या मालूम है? यह शेर है या हृदय की वेदना ।।
विकास कुमार
46. लाख मौके मिले थे तेरे जिस्म से खेलने के लिये । कमबख्त! दिल ने मुहब्बत की लाख रखी । हमें क्या मालूम था! तुझे हमसफर की जरूरत थी, जो तुझे गैरों में नसीब हुई ।।
विकास कुमार
47. वो गैर की दुनिया में कल भी खुश थी, आज भी खुश है । ना जाने! भावी काल उनके चेहरे पे मायूसी क्यूँ झलकाती? मेरे रब! मेरी महबूब, मेरी प्रेरणा, मेरी बुत को, फिर से उसके वह दिन लौटा दे । उसकी लबों की वो खुशियाँ लौटा दे । चाहे मेरी दुनिया की सारी खुशियाँ छीनले मुझसे । उन्हें हर खुशी दे ! मेरे रब!
विकास कुमार
48. गैर होकर भी अपने की तरह चाहा था तुम्हें । सारी दुनिया को छोड़, सिर्फ़ तुमको गले लगाया था हमने । कमबख्त! ये वक्त बेवफा है या अपनी मुकद्दर । ।
विकास कुमार
49. खुद का शेर , अब खुद से पढ़ा नहीं जाता । अपना हाल ही अब अपने से देखा नहीं जाता । उनसे मुलाकात हो तो पुछुँ ? -क्या हाल है अपनी? कैसी शेर है आपकी?
विकास कुमार
50. नये लोग, नयी शहर, नयी जहां मुबारक हो तुम्हें । जहां की सारी खुशियाँ नसीब हो तुम्हें ।।
विकास कुमार
51. तेरे साथ बिताये हर एक लम्हा को अपनी शेर में ढ़ालेंगे हम । तेरी बेवफाई की किस्से जहां को सुनायेंगे हम ।।
विकास कुमार
52. तेरे साथ बिताये हर एक लम्हा को अपनी शेर में ढ़ालेंगे हम । तेरी बेवफाई की किस्से दिल-ही दिल में दफनायेंगे हम ।।
विकास कुमार
53. जिन्दगी गुजरेंगी अब अगम जी के गीतों के साथ । क्योंकि बेवफाई की हर एक लब्ज़ बयां करती अगम जी अपनी आवाज के साथ ।।
विकास कुमार
54. ख्याब टूटी, दुनिया लूटी, बची है कुछ आसें । गैरों ने अपना कहा, और अपनों ने गैर । कमबख्त! दिल को क्या मालूम था? जिसे चाहा वो ही बेवफा निकला ।।
विकास कुमार
55. दिल में ही दफनेंगे अब वो सपने जो कभी साथ हमने देखे थे । साथ वो वक्त का मेहरबां, कभी हमने एकसाथ देखे थे ।।
विकास कुमार
56. मेरे सामने ही वह अपनी नयी जिन्दगी की तैयारियाँ शुरू करने लगी थी. वफा होकर बेवफाई की तरह गैर की जिन्दगी में जाना शुरू कर चुकी थी. अपना होकर भी गैरों की तरह बर्ताव करने लगी थी. निभाई की वफा की हर वह लम्हा, अपना बनकर. अब छोड़कर जा रही, गैर कहकर. पूछें जो! उनसे सवाल तो वो बोले मेरा जान क्या है तेरा हाल?
विकास कुमार
57. वो लाख कोशिश की थी इज़हार करवाने की । कमबख्त़ दिल ने खामोशी साधी थी । हमें क्या मालूम था? दिल की ये नादानी, हृदय की वेदना कहलायेंगी ।।
विकास कुमार
58. लाख कोशिशों के बावजूद भी तुझे भूलाया नहीं जाता । कमबख्त़! ये दिल का मामला है, दिल-ही-दिल में दफनाया नहीं नहीं जाता । किसे कहें अपनी दिल की दास्तां, दिल-ही-दिल में रखा नहीं जाता । तेरे साथ बिताये हर वह लम्हा याद किये बेगैर रहा नहीं जाता ।।
विकास कुमार
59. वो रहने वाली महलों में, मैं लड़का फुटपाथ का । उसकी हर एक अदा पे मरना । यही मेरा जज्बात था ।।
विकास कुमार
60. जहां के सारे-के-सारे बच्चें को लायेंगे हम तेरे मुहल्ले में और मिलकर खेलेंगे होली तेरे संगे में ।।
विकास कुमार
61. जहां की सारी-की-सारी रंगों को लायेंगे हम अपनी टोली में और मिलकर खेलेंगे होली तेरे संगे में ।।
विकास कुमार
62. जहां की सारी-की-सारी रंगों को बाँटंगे हम अपनी नन्हीं-नन्ही बच्चों की टोली में, और पुरी तैयारी के साथ आयेंगे हम तेरे मुहल्ले में, और खेलेंगे होली तेरे संगे में ।।
विकास कुमार
63. वो होली का दिन. वो रंगों का मौसम. वो बच्चों की टोली. वो फागुन का महीना, उपर से वो तेरा मुस्कुराना याद है कुछ!
विकास कुमार
64. वह होली का दिन. वह रंगों का मौसम. वह बच्चों की टोली. वह फागुन का महीना. वह बसंत-बहार का मौसम ,उपर से वह तेरा मुस्कुराना याद है कुछ!
विकास कुमार
65. मुहब्बत की नशा, प्यार की खामोशी, चाहत की रंग, लगाव का दर्द, इश्क का दुःख, स्नेह का आदर, प्रेम का समर्पण पवित्र होता है ।।
विकास कुमार
66. तेरा वह बेवफा होकर भी वफा निभाना याद है हमें । तेरा वह गैर होकर भी अपना बनाना याद है हमें । तेरा वह दुनिया में खोकर भी हमें पहचानना याद है हमें । तेरा वह हमारी हर एक नादानी पे मुस्कुराना याद है हमें । तेरा वह मेरा देखकर औ सखियों से बात करना याद है हमें । तेरा वह मेरा देखकर गैरों से बात करना और हमें तड़पाना याह है हमें । फिर वह समय का झोंका और हमारी मुहब्बत को रोका याद है हमें । फिर वह तेरा हमसे दूर होना याद है हमें । फिर वह तेरा नयी जिन्दगी जीना और मेरी जिन्दगी मायूस करना याद है हमें । फिर वह तेरा मेरा देखना और मेरा तेरा देखना याद है हमें । फिर वह तुझे अपनी दुनिया में खोना याह है हमें । फिर वह तेरा शुक्रिया अदा करना और मेरा यू.पी.एस.सी. क्लीयर करना याद है हमें । फिर वह तेरी दुनिया में पुनः आना और तेरा बार-बार शुक्रिया अदा करना याद है हमें । फिर वह तेरा मेरा बधाई देना और नयी जिन्दगी जीने की सलाह देना याद है हमें । फिर वह तेरा बार-बार मुस्कुराना और हमें देखना याद है हमें । फिर वह तेरा बार-बार शुक्रिया अदा करना और हमें समाज-सेवा में लगना याद हैं हमें । फिर वह हमें मौत की गोद में सोना और तेरा मेरा अधुरा कार्य पुरा करना याद है हमें- 3
… विकास कुमार
67. वह फागुन का महीना वह रंगों का मौसम । उपर से तेरा इतराना और मेरा रूठ जाना वह फागुन का महीना…. फिर वह तेरा रंगों में डूबना और हमें दिखलाना । वह फागुन का महीना…. फिर वह तेरा हँसना और हमें भी हँसाना । वह फागुन का महीना …. फिर वह तेरा रूठ जाना और बार-बार देखना । वह फागुन का महीना …. फिर वह तेरा रूठकर आना और हमें बार-बार मनाना । वह फागुन का महीना ….. फिर वह तेरे साथ हमें भी रगों में डूबना और तुझे भी डुबोना । वह फागुन का मौसम … फिर वह साथ-साथ कसम-वादे करना और तेरा हमें बार-बार देखना । वह फागुन का महीना …. फिर वह आँधियों को आना और हमदोनों को सावधान करना । वह फागुन का महीना … फिर वह समय का झोंका और हमदोनों को रोका । वह फागुन का महीना…. फिर वह साथ-साथ बिताये लम्हों का याद करना । वह फागुन का महीना…. फिर वह सभी सपनें को दिल-ही-दिल में दफनाना । वह फागुन का महीना …. फिर वह तेरा नयी जिन्दगी जीना और दिल-ही-दिल में रोना । वह फागुन का महीना …. फिर वह बार-बार समय को कोंसना और अपनी पुरानी बात को दुहराना । वह फागुन का महीना … फिर वह चुपके से जाना और खामोशियाँ साध लेना । वह फागुन का महीना …. वह रंगों का मौसम ।। …
विकास कुमार
68. एक शानदार टिप्पणी करने को जी चाहता । आपकी बातों को जिन्दगी में उतारने को जी चाहता । कमबख्त जिन्दगी किस रुख पे खड़ी है । उसे लौटाने को जी चाहता । किसी की हँसी को मुहब्बत समझा । उसकी परिणाम भुगतने को जी चाहता । वह गैर की दुनिया में खुश । हमें भी खुश रहने को जी चाहता । तोड़ के सारे बंधन अब नयी जिन्दगी जीने को जी चाहता । उसे कैसे कैसे कहुँ तेरे साथ बिताये हर एक लम्हा भुलाने को जी चाहता । तेरे साथ सोचे अब वो सारे सपने दिल-ही-दिल में दफनाने को जी चाहता । तेरे साथ किये हर वह कसम-वादे तुझे लौटाने को जी चाहता । तेरे साथ बिताये हुये एक लम्हा भुलाने को जी चाहता । तुझे भुलाने को कमबख्त दिल अब मजबुर नहीं करता । तुझे यह मन याद करके हृदय की वेदना की को भड़काना चाहता । हर वक्त तेरे यादों सु मुक्त होने को जी चाहता ।…
विकास कुमार
69. ऐसी रंग में खोयेंगे अबकी बार होली में । जहां की सारी-की-सारी कोशिशें नाकाम होगी हमें बेरंग करने में । जहां को ढ़ालेंगे हम अपनी रंगों में । वो लाख कोशिश करेगी हमें बेरंग करने की । फिर भी वो नाकाम रहेगी हमें असफल करने में ।
विकास कुमार
70. मुहब्बत की दुनिया में जुबां कुछ बयां नहीं करती, नहीं तो मुहब्बत की बदनामी होती है ।
विकास कुमार
71. कौन कहता है? रोना दुःख को दुर कर देता है । कभी मुहब्बत करके देखो । कमबख्त सीधे हृदय में वेदना होती है ।।
विकास कुमार
72. माना झुठी थी अपनी मुहब्बत. तेरी अदायें के काय़ल हो गये हम. अब रोते हैं हम. क्योंकि खोये हो तुम ..
विकास कुमार
73. पहली बार किसी युवती को हृदय की वेदना प्रकट करते हुये देखा है ।।
विकास कुमार
74. दूसरों की नापसंद की चिन्ता करना अपकी असफलता की पहली व आखिरी चरण है ।।
विकास कुमार
75. पैसे की भूखे लोग कभी-भी महान कार्य नहीं कर सकते हैं ।।
विकास कुमार
76. उँची उक्तियाँ, उँची सोच व उँजी आवाज में महान तथ्यों की व्याख्या अर्थात बोलने से कोई महान नहीं बन जाता है । अगर बन जाता तो आज सभी फिल्म जगत के सभी दिग्गज अभिनेता महापुरूष होते होते । लेकिन ऐसा है नहीं ।।
विकास कुमार
77. कितनी भी बेशकीमती बहुमूल्य भौतिक रत्न आपकी खुशी से ज्यादा मायने नहीं रखती । परमान्द की प्राप्ति तो अन्न-जल से ही होता है ।।
विकास कुमार
78. डॉली तो उठती है जहां में सबकी , कोई हँसके चढें तो कोई रो के ।।
विकास कुमार
79. वो जो तेरा बाहर राह ताकना और मायूस हो जाना, याद है कुछ !
फिर वो संध्या का बेला, और सुरज का डुबना याद है कुछ !
फिर वो चाँदनी रात, और तारों का चमकना याद है कुछ !
फिर वह सुरज की आस, और ख्याबों में सो जाना याद है कुछ !
फिर वह सुरज का उगना, और चिड़ियों का चहचहाना याद है कुछ !
फिर वह नयी जिन्दगी की शुरूआत, और नये लोगों से मुलाकात याद है कुछ !
याद है कुछ मेरी जां तुझे ।
फिर वह अपना होकर गैरों से बात करना और हमें तड़पाना याद है कुछ !
फिर वह गैरों से दिल को लगाना, और मेरा दिल तोड़ना याद है कुछ !
फिर वह गैरों को दिल में बसाना, और हमें दिल से निकालना याद है कुछ !
फिर वह गैरों को अपनी जुल्फों की छाँव में सुलाना, और हमें रातभर जगाना याद है कुछ !
फिर वह बाहों का सहारा गैरों को देना, और हमें बेसहारा करना याद है कुछ !
फिर वह तेरा बेवफा की तरह हँसना, और हमें रूलाना याद है कुछ !
फिर वह तेरा चुपके से शादी करना, और मेरा संन्यासी बनाना याद है कुछ !
फिर वह तेरा पिया के साथ रति (संभोग) और उन्हें पितृऋण से मुक्त करवाना,
और हमें शायर, लेखक, दार्शनिक व बनाना याद है कुछ !
विकास कुमार
80. बदलते थे, बदलते हैं, और बदलते रहेंगे जहां में लोग हजार । पर जो वक्त का रूख बदल दें, वहीं कहलायें लाखों में महान ।।
विकास कुमार
81. गैरों से बात करते-करते वो थक गई थी मेरे बारे में । आखिरकार वो रोकर चली गई मेरी जिन्दगी से ।।
विकास कुमार
82. उसकी खामोशी देखकर, हमें ऐसा लगा किः- जैसा टूटा दिल मेरा और दर्द उसे हुआ ।।
विकास कुमार
83. तेरे जाने के खबर से ही हृदय में वेदना सी झलकती है । होंठ मुस्कुराकर हँसती, और हृदय में वेदना सी होती है ।।
विकास कुमार
84. तोड़ के दिल मेरा, वह किसी नये दिल के तलाश में चला । आज फिर कोई नादान आशिक हमारी तरह उसकी हँसी को मुहब्बत समझा ।।
विकास कुमार
85. तोड़ के दिल वह मेरा किसी नये दिल के तलाश में चला । आज फिर कोई नादान आशिक हमारी तरह उसकी मुहब्बत के जाल में फँसा ।।
विकास कुमार
86. सभी बात एक तथ्य पर आकर खत्म हो जाती है. किः- यहाँ हम जीने आये थे, और मरके चले गये ।।
विकास कुमार
87. सभी बात एक तथ्य पर आकर खत्म हो जाती हैं किः- यहँ हम मरने आये थे, और जी के चले गये ।।
विकास कुमार
88. दिल-ही-दिल में दफन गई वो सपनें जो कभी हमने साथ देखे थे । तेरा क्या था? तुझे तो किसी और को नयी जिन्दगी बनाया था ।।
विकास कुमार
89. तेरे साथ बिताये हर एक लम्हा को अपनी शेर में ढ़ालने को जी चाहता है । तेरी बेवफाई के किस्से को जहां को सुनाने को जी चाहता है ।।
विकास कुमार
90. उसे तो दिल से खेलने की आदत बन चुकी थी । कमबख्त! दिल को क्या मालुम था? वह पहले भी किसी के दिल से खेल चुका था ।।
विकास कुमार
91. गैर होकर भी उसने मुझे अपना बनाया था । अब हाल है, कैसा बेवफा का, अपना होकर भी गैर बनाया है ।।
विकास कुमार
92. उसे तो गैरों का सहारा पहले ही मिल चुका था । फिर, यह नादान दिल उनसे मुहब्बत क्यूँ कर बैठ चुका था?
विकास कुमार
93. मिलते हैं जहां में खिलौने खेलने के लिए हजार । फिर यह लोगों का शौक क्यूँ बनाया तोड़ने को दिल हजार ।।
विकास कुमार
94. खिलौने कम पड़ गये थे क्या? तुझे खिलौने के लिए जहां मे, जो तुझे इस कमबख्त मुफलिस गरीब का दिल ही सुझा । मिलते हैं जहां में खेलने के लिए खिलौने हजार, फिर यह कमबख्त मुफलिस गरीब का दिल ही क्यूँ तोड़ा ।।
विकास कुमार
95. तेरी रईसी ने मेरी मुफलिसी का अच्छा मजाक उड़ाया है । गैर के बाहों का सहारा बनके, तुने अपनी रईसी का औकात दिखाया है ।।
विकास कुमार
96. खिलौना समझके तोड़ा था दिल उसने मेरा । अब जा रही है कहीं गैर कहकर अपना ।।
विकास कुमार
97. तोड़ के दिल मेरा वह पुराना दोस्त चला । एक बेवफा हरजाई के कारण वर्षों का गहार रिश्ता तोड़ा था ।।
विकास कुमार
98. टूट के दिल मेरा पत्थर-सा बना था । आज फिर किसी की याद इस दिल में जगा ।।
विकास कुमार
99. हुश्न के बाजार में उसे आबरू लूटाने की आदत सी हो गई थी । हमें क्या मालूम था? उसे खूद का ही पहचान नहीं था ।।
विकास कुमार
100. कमबख्त क्या नजारा अंजुमन में एक दिल तोड़ के एक दिल जोड़ने जा रहा कोई ।।
विकास कुमार
101. कमबख्त क्या सलीका है बेवफाओं की जाने की इक जिन्दगी बर्बाद करके एक जिन्दगी जीने जा रही है ।।
विकास कुमार
102. कभी मुलाकात अगर हो मुहब्बत के खूदा से पूँछू मैं उनसे कमबख्त इस मुफलिसों को पत्थर क्यूँ बनाया?
विकास कुमार
103. अपनी अदा दिखाके हुश्न के बाजार में मेरा भाव लगाया तुमने । मिल गया कोई रईसजादा तो इस मुफलिस गरीब को ठुकराया तुमने ।।
विकास कुमार
104. मुहब्बत की जहां में मुफलिसों की आशियाना की मैय्यत उठती है । रईसजादी मुफलिसों के दिल से जी-भर के खेलती है और जब भर जाते हैं दिल तो रईसजादा से दिल जोड़ती जहां में ।।
विकास कुमार
105. बदुआ तो हम गैरों को भी नहीं देते, तुझे क्या खाक देगें? दुआ ही दुआ लगें, ये दुआ है तुम्हें ।।
विकास कुमार
पहली बार किसी युवती को हृदय की वेदना प्रकट करती हुये देखा है । इससे प्रतीत होता है किः- हर युवती बेवफा नहीं होती है ।।
जमाने के रंग बदलते थे, बदलते हैं, और बदलते रहेंगे । लेकिन कुछ लोग अपनी सादगी, भाषा व संस्कृति को कभी नहीं बदलते । ऐसे ही लोग जहां में महान आत्मा के रूप में उभरते है ।।
विकास कुमार
नाम विकास कुमार
पिता भोला कमति
माता फुलकुमारी देवी
घर मोहनपुर
डाक-घर बरैठा
पंचायत बसघट्टा
थाना कटरा
जिला मुजफ्फपुर
राज्य बिहार
देश भारत
सम्पर्क सूत्र — 8340411428/9771607504
जय श्री राम
Nice
👏👏
वाह वाह
Bahut khoob