शायर
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इश्क का दरिया जब ज़ेहन के समंदर से मिलता है।
दिल के साहिल से टकरा, गज़ल बह निकलता है।
हिज़्रे-महबूब का गम हो, या वस्ले-सनम की खुशी,
ज़ेहन में अल्फ़ाज़ों का सैलाब उफनता, उतरता है।
जिसने भी कभी इश्क किया, वो शायर ज़रूर हुआ,
इश्क रब से करता है, या फिर महबूब से करता है।
दिल से निकले जज़्बात, उनके दिल में उतर जाए,
हो गई गज़ल, फिर ज़रूरी नहीं क़ाफ़िया मिलता है।
देवेश साखरे ‘देव’
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राही अंजाना - November 11, 2019, 11:43 am
बढ़िया
देवेश साखरे 'देव' - November 11, 2019, 11:57 am
धन्यवाद
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - November 11, 2019, 11:47 am
अतिसुंदर
देवेश साखरे 'देव' - November 11, 2019, 11:57 am
आभार
nitu kandera - November 11, 2019, 4:34 pm
good
देवेश साखरे 'देव' - November 11, 2019, 10:13 pm
Thanks
NIMISHA SINGHAL - November 11, 2019, 8:52 pm
Nice
देवेश साखरे 'देव' - November 11, 2019, 10:13 pm
Thanks
Abhishek kumar - November 24, 2019, 9:09 am
मज़ेदार
देवेश साखरे 'देव' - December 13, 2019, 4:48 pm
धन्यवाद