संघर्ष ; शेष है !
किसी नदी का
सिर्फ़ नदी होना ही पर्याप्त नहीं होता ॰
किसी भी नदी का जीवन बहुत लंबा नहीं होता
बेशक; लंबा हो सकता है : रास्ता ,
न, ही ………………..
शेष रह जाता है
नदी का जीवटता भरा अस्तित्व
कहीं किसी महासागर में
आत्म—सात हो जाने के पश्चात ॰
इसीलिए; ज़रूरी है——–
हर नदी के लिए
—- बनाए रखे अपनी पहचान
—- जिजीविषा के प्रतिमान
—- जीवन के मधुर गान ॰
कुछ कर गुजरे ………..
महाकाया में विलय से पहिले ॰
यही यथार्थ पिरोये
उसकी लहर—लहर ढोये
उद्धेग…… अल्हड्पन…… तीव्रता
दिशा—हीनता का बोध
चुभते—नुकीले पत्थरों के मध्य
जीवन—संगीत का शोध
किसी आवश्यकता के मद्दे—नज़र
बंजर सींचने की क्षमता ढहते किनारों का प्रतिरोध
उसकी पहचान बने
नदी ………… मात्र एक नदी न रहे !
: सृष्टि का जीवन—गान बने ॰
तभी; किसी नदी की
उद्गम से विश्राम तक
तय—शुदा शौर्य—गाथा की सार्थकता होगी ॰
संघर्ष ——— हर पल जारी है
नदी ………………
: कोई युद्धरत अनमनी सदी
:अनुपम त्रिपाठी
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#anupamtripathi #anupamtripathiK
very nice..
आभार सुमितजी।नदी और जीवन सूक्ष्म से विराट होने की जिजीविषा की अलौकिक कथा–यात्रायें हैं———परोपकार की अक्षुण्ण पावन भावना के द्योतक।विपरीत परिस्थितियों में ढलने और अपना रास्ता बनाने की संघर्ष कथायें।अनुभव की ज़मीन बहुत पथरीली जो होती है।
amazing poetry!!
धन्यवाद अंजलिजी।नदी और जीवन दोनों ही परोपकार की संघर्ष यात्राऐं हैं।अनुभवों का अनहद सफ़र।आपको इस शौर्ययात्रा ने आन्दोलित किया ; रचना की सफलता इसी में निहित है।आभार आपका।
वाह बहुत सुंदर