समझों तो यहीँ मोहब्त हैं
ये अल्फाज़ , अल्फ़ाज़ ही नहीं , दिल की ज़ुबानी हैं …..
इन्होंने ज़न्नत को , जो जमीं पर लाने की ठानी हैं …
साथ देने को कई मरतबा भीग जाती हैं पलकें …..
समझों तो यही मोहब्त हैँ , ना समझों तो पानी हैं…..
पंकजोम ” प्रेम “
ये अल्फाज़ , अल्फ़ाज़ ही नहीं , दिल की ज़ुबानी हैं …..
इन्होंने ज़न्नत को , जो जमीं पर लाने की ठानी हैं …
साथ देने को कई मरतबा भीग जाती हैं पलकें …..
समझों तो यही मोहब्त हैँ , ना समझों तो पानी हैं…..
पंकजोम ” प्रेम “
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Bahut khoob . ..
Sukkriyaaa bhai…
samajne se pathar bhi bhagwan ban jaata he
Ab bas insaan ko samajna baaki he :)…..nice poem pankaj!
Right anjali ji. Or hum sub se behtar insaano ko kn smjh skta h…
nice anjali
ना समझों तो पानी हैं……nice 1
Dhnyawad ankit bhai
दिल से धन्यवाद जी….
nice poem pankaj ji
Sukkriya ji
सुस्वागतम् जी….
Its all our understanding about world…makes the world…nice poem
Stt prtist sch kha ..anupriya ji
Beautiful poem.. 🙂
Tnxx komal ji….
बहुत ही लाजवाब
समझों तो यही मोहब्त हैँ , ना समझों तो पानी हैं…..
बहुत सुंदर