सुंदर से इक फूल ने ….!
सुंदर से इक फूल ने ….!
कल जैसा था वह आज नहीं,
कल कैसा होगा पता नहीं,
है आज अलग इन दोनों से,
हर दिन जैसे नव फूल खिले.
पर दिल अपनी मनमानी मे,
जाने कैसी शैतानी मे,
इस सुंदर आज को छोड़,
यार, कल मे ही है रहता उलझे… (या बीता हुआ कल, या आनेवाला कल)
सुंदर से इक फूल ने उस दिन,
चुपके से मुझे पास बुलाकर,
कुछ मुस्काकर, कहा ये मुझसे…
“ऐसे क्यों मुरझाये हो तुम,
ऐसे क्यों घबराए हो तुम,
ऐसा भी है तुमको क्या गम,
इतनी लम्बी उम्र तुम्हारी,
फिर भी तुमको खुशी नहीं है ! मुझको देखो……
कल मुरझा कर मर जाना है,
आज का दिन जो मेरी जिंदगी,
खुश रहकर और खुशी बाँट कर, सुन्दरता से ही जीना है…..”
सुंदर से उस फूल ने मुझको सिखलाया है,
अर्थ नया जीवन का अपने….
कितने दिन जीवन मे काटे…
इसका तो कुछ अर्थ नहीं है,
खुश रहकर और खुशी बांटकर,
सुन्दरता से, साथ मे लेकर प्यारे सपने,
निर्भयता से, जितने काटे, उस से ही मतलब है ………
सुंदर से उस फूल ने मुझको सिखलाया है..
सुंदर से उस फूल ने मुझको दिखलाया है….
इसीलिए अय मेरे प्यारों,
फूलों जैसा जियें हर इक दिन,
प्यार करें पल पल से प्यारों,
बचे हुए जीवन के हर दिन.
आओ सब मिल साथ चलें यूं,
हम अपने जीवन मे निशिदिन,
सुन्दरता के बने पुजारी,
सुंदर कर दें जीवन, हर दिन ….…..
“विश्व नन्द”
वाह
Good
Very nice