सुनती आ रही हूं बातें दुनिया की
सुनती आ रही हूं बातें दुनिया की
बातों में पता नहीं अपनापन कहीं खो जाता है
करती हैं बातें दुनिया जमाने भर की
मगर खुद को बयां नहीं कर पाता है
सुनती आ रही हूं बातें दुनिया की
बातों में पता नहीं अपनापन कहीं खो जाता है
करती हैं बातें दुनिया जमाने भर की
मगर खुद को बयां नहीं कर पाता है
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Sahi kahan aapne
thanks panna
Subbanallah ………..kya kha h…aap ne….behtrin alfaaz
thanks pankaj
khud ko bayan krna……..bht mushkil h….nice!! 🙂
thanks ankit
nice poem anu!
thanks dear anjali
वाह
Waah
बातों में पता नहीं अपनापन कहीं खो जाता है