हँसना भूल गए
आज अवसादो से जुङा है रिश्ता अपना
मुस्कुराना भूल गए, कहाँ होता है हंसना अपना
वो बात- बात पर रूठकर चुप होके बैठे रहना
थोड़ी- सी गुदगुदी पे खिलखिला के हंसना
गम की परछाई नहीं,इतरा के तितली-सा उङना
अब तो बस जिम्मेदारियों के बोझ तले दबना
मुस्कुराना भूल गए, कहाँ होता हंसना अपना ।
सुन्दर अभिव्यक्ति
सादर आभार
सुमन जी आप ने बहुत अच्छा लिखा है ❤❤धन्यवाद
सुंदर भाव
सुंदर