ज़िन्दगी में तजुर्बों की इक किताब रख
ज़िन्दगी में तजुर्बों की इक किताब रख
चेहरे देख परख और उनका हिसाब रख !!
मुझे बे-घर कर दिया नींद के फरिश्तों ने
सूनी आँखों पे पहले तू कोई ख्वाब रख !!
खुद ही खुद को लिख रहा हूँ खत कब से
मेरे खतों के कभी तो तू कोई जवाब रख !!
भीतर से मैं आज भी बच्चा ही हूँ बहला ले
लाकर हथेली पे मेरी कभी माहताब रख !!
मेरे अंदर झाँक कर,अंदर से देख मुझको
कभी काँटों के बिच तू कोई गुलाब रख !!
पढ़ लेंगे लोग चेहरे से हाल-ए-दिल सारा
पुरव आँखों में तू आँसुओ का सैलाब रख !!
पुरव गोयल
behatreen
shukriya aapka housla afazaai keliye
shukriya sahab ji housla afazai keliye
shukriya panna ji