अंधेरे से ज्यादा, करीबी न रखना,
अंधेरे से ज्यादा, करीबी न रखना,
अंधेरे से दूरी बनाए ही रखना।
भले ही जमाना, तुम्हें कुछ न समझे,
मगर हौसले को बनाये ही रखना।
चली आंधियां है, धूल उड़ रही है
आंखों को अपनी बचाये ही रहना।
भरी दोपहर, तेज सूरज की किरणें,
मासूम चेहरा छुपाए ही रखना।
शानदार कविता, वाह
बहुत ही उम्दा, बहुत ही सुंदर
“भले ही जमाना, तुम्हें कुछ न समझे,मगर हौसले को बनाये ही रखनाचली आंधियां है, धूल उड़ रही है
आंखों को अपनी बचाये ही रहना”
बहुत सुंदर कविता है सतीश जी मुसीबत में भी हौसला बनाए रखने का आश्वासन देती हुई बहुत ही प्रेरक रचना.किसी रोते हुए को भी मुस्कान देने वाली बहुत ही प्रेरणा देती हुई पंक्तियां हैं
वाह सर वाह, क्या बात है
Atisunder