अकेला अकेला रहने लगा है

आत्मीयता कहीं
खो गई है,
वह शहर की गलियों में
रो रही है।
किसी को किसी से
मतलब नहीं है,
समन्वय की बातें
खो गई हैं।
सहभागिता के
भाव ही नहीं हैं,
एक दूसरे की
चाह नहीं है।
प्रेम की कहीं अब
बातें नहीं हैं,
दर्द बांटने की
रीतें नहीं हैं।
करीब के पड़ौसी
करीब में ही रहकर
एक- दूसरे को
जानते नहीं हैं।
मानव का सामाजिक पन
आजकल अब
एकाकीपन में
बदलने लगा है।
चारहदीवारी में
कर बन्द खुद को,
अकेला अकेला
रहने लगा है।

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

  1. सामाजिकता का महत्व और अकेलेपन के दुष्प्रभाव को बताती हुई कवि की बहुत सुन्दर रचना

+

New Report

Close