Categories: मुक्तक
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शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
उम्र लग गई
ख्वाब छोटा-सा था, बस पूरा होने मे उम्र लग गईं! उसके घर का पता मालूम था , बस उसे ढूंढने मे उम्र लग गईं !…
ऐसा क्यों है
चारो दिशाओं में छाया इतना कुहा सा क्यों है यहाँ जर्रे जर्रे में बिखरा इतना धुआँ सा क्यों है शहर के चप्पे चप्पे पर तैनात…
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
कविता : वो सारे जज्बात बंट गए
गिरी इमारत कौन मर गया टूट गया पुल जाने कौन तर गया हक़ मार कर किसी का ये बताओ कौन बन गया जिहादी विचारों से…
वाह वाह, बहुत खूब, कवि ने अभिधा के साथ लक्ष्यार्थ साधना की है। भाषा मे सुन्दर प्रवाह है, कविता संप्रेषणीय है।
बहुत सुंदर 👌👌
कवि चंद्रा जी ने इतनी ठंड में धूप का आह्वाहन किया है, बहुत ख़ूब।
अतिश्योक्ति अलंकार का सुन्दर प्रयोग,
“अरी ओ धूप तुम क्यों डर गई ठंडक से चीर कर आ जाओ
हमें तपा जाओ,”
सुन्दर,शिल्प , ख़ूबसूरत कथ्य और सुन्दर लय साथ लिए हुए रोचक कविता
बहुत खूब