*आओ वक्त के साथ चलें*

समय तो है निरंतर गतिमान
आओ वक्त के साथ चलें ।
घंटों खड़े होकर आईने के सामने
सूरत को ही क्यों सजाते रहते
आओ अपनी सीरत को भी
हम निखारतें चलें ।
आओ वक्त के साथ चलें ।
परिस्थितियां सम भी होती और विषम भी
परिस्थितियों से घबराए बिना ,
उनका डटकर सामना करके चलें
आओ वक्त के साथ चलें ।
दो पल की है जिंदगानी मिली,
कब रुक जाए यह सांसे
तो क्यों ना सभी को
अपना बना कर चले
आओ वक्त के साथ चलें

स्वरचित एवं मौलिक रचना
—-✍️एकता गुप्ता *काव्या*
उन्नाव उत्तर प्रदेश

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