पिता की छांव

विषय– पिता की छांव मां-पापा हैं मेरे जीवन की पतवार कैसे चुका पाएंगे हम अपने पापा के उपकार चलना सिखाया पापा ने मुझे गोद उठा…

*नारी तू नारायणी*

अबला बनकर रह लिया बहुत अब स्वयं सबला तुम्हें बनना होगा कभी पुत्री बहन मॉं पत्नी बन सखा निभाती फर्ज सभी हर फर्ज निभाया तुमने…

*किताबें और कलम*

किताबें और कलम होती हैं हमारी मार्गदर्शिका* हमारे जीवन में निभाती है महत्वपूर्ण भूमिका* ताउम्र हम सीखते हैं इनसे, ये हैं हमारी विरासत मानव विकास…

सिंहवाहिनी मां दुर्गा**

सिंहसवारी मां अष्टभुजाधारी पालनहारी–१ ममतामयी सौभाग्य प्रदायिनी भवमोचनी–२ वरदायिनी विमल मति देती पीडा़ हरती–३ जगजननी बारंबार प्रणाम है प्यारा धाम–४ करूं विनती मां झोलियां भरती…

प्रेरणा

जीवन के हर मोड़ पर नई चुनौतियां आती है कहीं दे जाती है हार हमें कहीं जीत दे जाती है । कहीं मिलती है समीक्षाएं…

अहंकार

प्रजापति दक्ष हो या हिरना कश्यप सा राजा विद्वान रावण हो या हो कौरव वंश का कुनबा इनके हनन का भी अहंकार ही बना संघारक…

ना करें पलायन

जरूरतमंद आए नजर तो न करें वहां से ‘पलायन’ करें मदद उसकी दें कुछ उसे ‘उपायन’ निज तन से करी मदद उसकी ना करें चहुंओर…

मेरी ख्वाहिश इतनी सी

कहीं लाऊं मैं खुशियां कहीं खुशनुमा माहौल लाती हूं कभी लिखती हूं कविताएं कभी भजन गुनगुनाती हूं चहुंओर बरसे प्रेम, स्नेह ऐसी बहार लाती हूं…

मानवता

मानवता का मत हनन करो ईर्ष्या द्वेष नफरत को अब दफन करो ना जाने कब रुक जाएं यें सांसे ? अब तो अच्छे कर्म करो…

मिठास कहां

अब मिठास बची कहां ना रिश्तो में ना नातों में ना अपनों की बातों में कड़वाहट के बीज बोयें जा रहे ना जाने कहां-कहां ?…

मन बड़ा चंचल

यह मन बड़ा चंचल कभी डोलता इधर कभी डोलता उधर ना जाने कब हो जाए किधर कभी दूजे की कभी अपनी फिकर मन में चलता…

मैं और मेरी कलम

जुल्म सितम बढ़ रहा था हर तरफ मै हुयी बिल्कुल अकेली ना कोई पास मेरे ना कोई साथ मेरे किससे करूं हंसी ठिठोली तभी नजर…

ना बिखरे कोई परिवार

सावन परिवार के सभी सदस्यों को विश्व परिवार दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।। ना पड़े रिश्तो में कोई दरारें अब न टूटे न बिखरे कोई परिवार…

कौन विछिप्त है??

रास्ते से एक विछिप्त महिला थी गुजर रही, याकायक मेरी नजर पड़ी, चली जा रही थी अपनी धुन में, ना जाने क्या थी बड़बड़ा रही,…

नई वेबसाइट के शुभारंभ पर सावन मंच का आभार

काव्य की शोभा बढ़ाने को सावन ने लिया नया अवतार, हमेशा नई ऊंचाइयां छूता रहे हमारा सावन परिवार, ह्र्दय से करती अभिनंदन,सबका व्यक्त करती आभार,…

ये वक्त भी बीत जाएगा

एक दिन मधुसूदन ने,पार्थ को था विचलित देखा, मन बड़ा व्याकुल और व्यथित देखा, पूछते मधुसूदन,पार्थ!कहो क्या है बात , बोले पार्थ, हे मधुसूदन,ऐसा बतला…

क्यूं नहीं समझते

हम क्यूं नहीं समझ पाते हैं मजदूरों की लाचारी को, उधारी का ठप्पा लगाकर ना देते पैसे मजदूरों की दिहाड़ी को, मजदूर दिवस मनाने को…

वक्त के रंग

वक्त कब क्या रंग दिखाए हम नहीं जानते वक्त के दिए हुए जख्म कैसे मिटाएं हम नहीं जानते क्या पता था उस देवकी को, जिस…

भले मानुष बनो

दिन पर दिन कर रहे व्यभिचार क्यों बढ़ा रहे हौं तुम‌ ऐब, खुद बीड़ी सिगरेट गुटखा खाए तम्बाकू पिये दारू, बच्चा खाए ना पावे एको…

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