इंसान घर तोड़ रहा है
सदियों पुरानी मर्यादाओं को
क्षण भर में तोड़ देना
अपने अब वही है जो जानते हैं
नीबू जैसे निचोड़ लेना
बहुमंजिला इमारत के नीव के पत्थर
गायब है
फिर ऎसा विश्वाश कैसे आया
कि इमारत सलामत रहेगी
अच्छा नहीं है छोड़ देना
इंसानियत के मुखौटे पहने इंसान
इंसानों को मरोड़ रहा है
घर बनाने के लिए नया
बने बनाए घर को तोड़ रहा है
अतिसुंदर रचना
Great
इंसानियत के मुखोटे पहने इंसान इंसानों को मरोड़ रहा है,
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
यथार्थ चित्रण किया है आपने
Nice
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी