इल्जामों के खंजर

जाने क्यों कुछ अल्फाज
सिसकते रहते हैं
हम तुम्हारी यादों में
महकते रहते हैं
यूं तो हमारी मोहब्बत की
पूजा करता है जमाना
पर जब भी हम एक होना चाहते हैं तो
लोग बेबुनियाद इल्जामों के खंजर भोंकते रहते हैं।

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Responses

  1. प्रज्ञा जी आपकी लेखनी बहुत स्तरीय गति से आगे बढ़ी है। इस लेखनी में सरलता है प्रवाह है और भाव पाठक के लिए सहज ग्राह्य हैं।

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