इश्क़ के सफर में

ज़िन्दगी के सफर में
कई हमराह मिलते हैं।
कहीं पे वाह मिलते हैं
कहीं पे आह मिलते हैं।।
सफर में इश्क़ के
कुछ विरले होते हैं
जिन्हें आखिर में भी आकर
मंजिल – ए- चाह मिलते हैं।।

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जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. बहुत समय बाद
    सुनाई दिए आपके सुनहरे बोल
    मन प्रसन्न हुआ,
    पढ़कर पंक्तियाँ अनमोल।
    —– आदरणीय शास्त्री जी की सुमधुर रचना। वाह

  2. वाह भाई जी, बहुत ही सुंदर पंक्तियां, जिंदगी की सच्चाइयों को बयान करती हुई मधुर रचना

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